[ इस लेख का संपादित रूप दैनिक भास्कर के 13 अक्टूबर 2011 के दिल्ली संस्करण में छपा था ]
ऐसा एक ही बार हुआ कि ऐपल कंपनी का बनाया कुछ खरीदने की मेरी इच्छा हुई। एक कंप्यूटर दिखा था दिल्ली के कबाड़ी बाजार में तीन साल पहले। देखने में वो बिलकुल 1984 में जारी हुए प्रसिद्ध मैकिंतोश मॉडल जैसा था। बेचने वाले नें कहा कि ठीक काम करता है और तीन हजार रुपए का है। जेब में पैसे कुछ कम थे इसलिए नहीं लिया। वापस गया तो वो दुकानदार फिर नहीं मिला।
जो कोई कंप्यूटर का इतिहास जानता है उसके लिए वो पुराना मैकिंतोश मॉडल किसी वेद या पुराण की पाण्डुलीपि जैसा है। पहली बार दुनिया नें एक ऐसा कंप्यूटर देखा था जो इस्तेमाल में आसान और दिखने में आकर्षक था। स्टीव जॉब्स के नेतृत्व में ऐपल ने कई ऐसे कंप्यूटर और यंत्र बनाए जिनके पीछे लोग दीवाने हुए। इतने बिके कि कुछ महीने पहले ऐपल माइक्रोसौफ्ट से बहुमूल्य कंपनी हो गयी। स्टीव जॉब्स के जीते जी ऐसा हुआ ये न्याय संगत ही था। कई साल प्रसिद्धि और दौलत के संसार में जॉब्स माइक्रोसौफ्ट के बिल गेट्स से पीछे रहे। गेट्स कई साल दुनिया के सबसे अमीर आदमी रहे जबकि माइक्रोसौफ्ट के बनाए कंप्यूटर सौफ्टवेयर ऐपल की तुलना में बहुत ही कमजोर माने जाते है।
जानने वाले जानते है कि जिस विंडोज़ औपरेटिंग सिस्टम के दम पर सौफ्टवेयर के बाजार पर माइक्रोसौफ्ट का लगभग ऐकाधिकार बना रहा (और आज भी बना हुआ है) उसके पीछे ऐपल का मैकिंतोश था। 1983 में माइक्रोसौफ्ट ऐपल के लिए कुछ काम कर रहा था। भरोसे में और अनुबंध के अंतर्गत उसे ऐपल ने अपने कुछ कंप्यूटर शोध के लिए दिए थे। उसके कुछ महीने बाद ही माइक्रोसौफ्ट ने अपना विंडोज़ औपरेटिंग सिस्टम जारी किया जो दिखने और इस्तेमाल में बिलकुल मैंकितोश के औपरेटिंग सिस्टम जैसा था। ऐपल नें माइक्रोसौफ्ट पर मुकदमा ठोका जो पाँच साल चला। अदालत नें फैसला माइक्रोसौफ्ट के पक्ष में दिया। वहाँ से माइक्रोसौफ्ट बढ़ता गया और ऐपल पिछड़ता गया। 1996 में ऐपल दीवालिया हालत में था जब कंपनी ने उस आदमी को बुलाया जिसने कंपनी को बनाया था।
जॉब्स को 1985 में ऐपल से निकाला था और उसी अधिकारी नें निकाला था जिसे जॉब्स पेप्सी कंपनी से तोड़कर ऐपल को चलाने के लिए लाए थे। जॉब्स के लौटने के बाद ऐपल के दिन फिरने लगे। उनके साथ काम करने वाले कई लोगों ने बताया है कि जॉब्स के स्वभाव में एक तरह की बेचैनी हमेशा रही है। स्कूल के दिनों से ही जॉब्स दूसरों से अलग सोचते थे और बड़े बड़े सपने देखते थे। जो बातें और विचार दूसरों के लिए साधारण होते वो जॉब्स के लिए अनन्य और गहन अनुभूतियों से कम नहीं होते। उनके व्यक्तिगत जीवन और काम में एकरसता हमेशा रही। उनके साथ काम करने वाले बताते हैं कि वो काम करवाने में बहुत ही अव्यव्हारिक, कठिन और जटिल आदमी थे। चीखना चिल्लाना और अभद्र बर्ताव उनके लिए साधारण बात थी। लेकिन ऐसे भी कई थे जो उनके प्रति गहरी वफ़ादारी रखते थे। ऐपल के बनाए कंप्यूटर और दूसरो इलैक्ट्रौनिक्स को इस्तेमाल करने वालो में भी उनकी बनाई चीज़ों के प्रति लगभग भक्तिभाव रहा है।
जॉब्स कंप्यूटर इंजीनियरी नहीं पढ़े थे और ऐपल के शुरुआती कंप्यूटर उनके मित्र स्टीव वौज़नियाक उनके गैरेज में बनाते थे। जॉब्स ने डिजाइन और साज–सज्जा की पढ़ाई भी नहीं की थी। उनकी कामयाबी और प्रसिद्धि का कारण था उनका सनकीपन, अपनी ज़िद का पीछा करने का पागलपन। उन्हे जो जंचता था उसके पीछे पड़ जाते थे। उन्होने जिन विचारों और उत्पादों के लिए काम किया उनमें कई असफल रहे। लेकिन जो चले वो ऐसे चले जैसे पहले कभी नहीं देखा गया था।
उनके नेतृत्व में डिज़ाइन करी हुई मशीनों में लोगों को वो सब मिला है जो वो एक कंप्यूटर में चाहते थे लेकिन किसी को बता नहीं सकते थे। जॉब्स को सहज ही पता रहता था कि कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले उनकी मशीन और सौफ्टवेयर से क्या चाहते हैं। ऐसे कई डिज़ाइनर और कारीगर होते हैं जो लोगों को ठीक वही दे सकते हैं जो लोग माँगते हैं। बिरले ही होते हैं जो लोगों को वो दे सकें जो वो चाहते हैं पर जिसे वो बयान नहीं कर सकते। इसीलिए वो हमेशा माइक्रोसौफ्ट से बेहतर सौफ्टवेयर प्रोग्राम बनाते रहे।
जब कोई व्यक्ति सफल हो जाता है तो उसके दुर्गुणों की कोई बात नहीं करता। मृत्यु के बाद तो कतई नहीं। मृतक की बुराई में लोग ओछापन देखते है। पर सत्य हमारी भावनाओं का मुलाज़िम नहीं है। जॉब्स की मृत्यु के बाद उनका जैसा महिमामंडन हो रहा है उसमे अगर झूठ नहीं भी हो तो सत्य के केवल चुने हुए पहलू ही हैं। राग जॉब्स के अतिशयोक्ति रस में हम डूब रहे हैं।
जैसे उनकी उठाईगिरी ही लीजिए। उन्होने खुद कहा कई बार कि वो बहुमूल्य विचार चुराने से कभी नहीं शर्माए। उन्होने कहा कि अच्छे कलाकार नकल करते हैं, महान कलाकार चोरी करते हैं। इस एक वाक्य में वो अपने ऐसे कई कर्म छुपा जाते थे जो आज ऐपल के कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर लोग जानते भी नहीं होंगे। उनके कीर्तीगान में सबसे बड़ा सुर है माउस और ग्राफिकल इंटरफेस का। ये ही वो दो अविष्कार हैं जिनके दम पर साधारण लोग कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकते है। इनके पहले केवल कंप्यूटर इंजीनियर ही ऐसी मशीनों का उपयोग कर पाते थे। इन दोनों को जॉब्स की उबलब्धि माना जाता है क्योंकि ज्यादातर लोगों ने पहली बार इन्हे मैकिंतोश कंप्यूटर में ही देखा था।
पर ये दोनो अविष्कार किए थे ज़ेरौक्स कंपनी के काम करने वाले इंजीनियरों नें। वो काम करते थे कंपनी की पालो आल्टो की लॅबोरेटरी में। ये कैलिफोर्निया में हिप्पी और वैकल्पिक विचारों का जमाना था और जॉब्स भी इसी में बड़े हुए थे। ज़ेरौक्स के मैनेजर पिछले जमाने के थे और उन्हे अंदाज़ नहीं था कि उनके इंजीनियरों ने क्या इजाद किया था। ऐपल कंपनी में शेयर के बदले उन्होने जॉब्स को अपने लोगों का काम देखने की इजाज़त दे दी। जॉब्स ने जब ये देखा तो भौंचक्के रह गए। ऐपल के लीसा और मैकिंतोश कंप्यूटरों पर ज़ेरौक्स के काम का गहरा प्रभाव पड़ा था और सबसे महत्वपूर्ण अविष्कार मुफ्त में मिल गए थे।
इसीलिए जब ऐपल ने माइक्रोसौफ्ट पर मुकदमा किया तो ज़ेरौक्स ने ऐपल पर कर दिया, ये कह के कि जो माइक्रोसौफ्ट ने ऐपल से चुराया था वो ऐपल ने उनसे चुराया था। अदालत में दोनों मामले खारिज हो गए। इसके बाद भी ऐपल नें हमेशा अपने सौफ्टवेयर के कोड्स गुप्त रखे हैं, ठीक वैसे जैसे माइक्रोसौफ्ट नें रखे। एक पूरी दुनिया है जो कहती है कि सौफ्टवेयर के कोड्स अगर खुले नहीं हों तो लोकतंत्र और सामाजिक जीवन की हानि होती है।
इस दुनिया में कई लोग हैं जिन्होने अपनी प्रतिभा और वर्षों की मेहनत होम कर दी क्योंकि उन्हे इस नई डिजिटल दुनिया में आजादी और लोकतंत्र के मूल्य प्रिय थे। इनमे सबसे बड़ा नाम है रिचर्ड स्टौलमैन का। जॉब्स उस दुनिया से दूर रहे। उनका अलग सोचना (ऐपल की मशहूर लाइन थी थिंक डिफरेंट) वहीं तक गया जहाँ तक पैसा कमाया जा सके। आज ऐपल कंप्यूटर की दुनिया पर एकाधिकार की हालत में आ रहा है और उसका दबदबा खुलेपन को दबा रहा है। ये ऐपल के आईफोन से लेकर आईपैड तक पर लागू होता है जिनमें वही ऐप्स डाली जा सकती हैं जिन्हे ऐपल अनुमति देता है।
1984 में मैकिंतोश कंप्यूटर को एक विज्ञापन के साथ उजागर किया गया था जिसे खुद जॉब्स ने बनवाया था। ये विज्ञापन आज भी ऐडवर्टाइजिंग के छात्रों को पढ़ाया जाता है और आप इसे यूट्यूब पर देख सकते हैं। उसमे जौर्ज औरवेल के प्रसिद्ध उपन्यास “1984” की तर्ज पे एक तानाशाह था जिसके खिलाफ बगावत का बिगुल ऐपल बजा रहा था। जॉब्स की नजर में उस समय की कंप्यूटर की दुनिया मे आईबीएम कंपनी की तानाशाही चलती थी। फिर इस दुनिया के बेताज तानाशाह हुए बिलगेट्स। उनके बाद वो ताज खुद स्टीव जॉब्स के सिर पर आ गया। जिन मूल्यों की नींव पर स्टीव जॉब्स कंप्यूटर की दुनिया में घुसे उन मूल्यों को उन्होने सफलता के लिए छोड़ दिया।
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what struck me about sopanjosi is brilliant sense of humour and his sensibilities.when he so care fully chose his words. you can read sopan he always sounds so valid